Schizophrenia: जब सच और कल्पना के बीच खो जाती है ज़मीनी हकीकत

क्या किसी ने कभी ऐसी आवाज़ें सुनी हैं जो असल में मौजूद ही नहीं? कभी-कभी लगता है कि लोग आपके खिलाफ साजिश रच रहे हैं, या हर कोई आपको देख रहा है? Schizophrenia नामक मानसिक रोग इससे भी ज्यादा गहरी और परेशान करने वाली दुनिया है। यह बीमारी दिमाग में ऐसे झंझावात पैदा करती है जिससे इंसान अपनी ही दुनिया से कटने लगता है—रिश्ते, दोस्तियां, पढ़ाई, नौकरी, सब कुछ दूरी पर चला जाता है।

Schizophrenia का पहला हमला अक्सर युवावस्था या शुरुआती जवानी में होता है। दिलचस्प है कि पुरुषों में इसके शुरुआती लक्षण महिलाओं के मुकाबले जल्दी दिखते हैं। इसके मुख्य लक्षणों में मतिभ्रम (आवाजें सुनना, चीजों को होते न देखना), भ्रम (गलत या अजीब मान्यताएं), बेतुकी बातें बोलना या समझ में न आने वाली बातें करना, और भावनाओं में भारी कमी या जड़ता आना शामिल है। कुछ मरीज अपने परिवार और दोस्तों से बिल्कुल कट जाते हैं, सामाजिक मेलजोल से बचना शुरू कर देते हैं और खुद में ही खो जाते हैं।

ऐसी स्थितियां मरीज और उनके परिवार—दोनों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं। हर छोटी-बड़ी चीज़ पर संदेह, खामख्याली डर और निराशा…इन सबसे उबरना आसान नहीं होता।

क्या हैं इस मानसिक रोग के पीछे के कारण और इससे निपटने के उपाय?

क्या हैं इस मानसिक रोग के पीछे के कारण और इससे निपटने के उपाय?

इस बीमारी की जड़ में अक्सर आनुवांशिक कारण छुपे होते हैं। यदि परिवार में किसी को यह रोग है तो दूसरे सदस्य भी खतरे में रहते हैं। इसके अलावा, गर्भावस्था के दौरान किसी तरह की परेशानी, जन्म के समय दिमाग पर चोट, या बचपन में भारी तनाव भी Schizophrenia को जन्म दे सकते हैं।

मरीजों के दिमाग में डोपामिन नामक रसायन का असंतुलन रहते देखा गया है, जिससे दिमाग की काम करने की क्षमता बदल जाती है। यही वजह है कि दवाओं का असर भी सीधा दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर पर होता है। कुछ शोध में यह बात भी सामने आई है कि मादक द्रव्यों का सेवन, जैसे गांजा या शराब, इस बीमारी की संभावना बढ़ा सकता है—खासकर जिनमें पहले से जोखिम हो।

डॉक्टर इस रोग की पहचान मुख्यतः मरीज की बातें, व्यवहार, और सोचने के तरीके के आधार पर करते हैं। कभी-कभी ब्लड टेस्ट या ब्रेन स्कैन सिर्फ यह तय करने के लिए करवाए जाते हैं कि दिमाग में कोई और बीमारी न हो। Schizophrenia का असली ट्रीटमेंट एंटीसाइकोटिक दवाओं (Antipsychotic medications) से शुरू होता है, जो मरीज के भ्रम, मतिभ्रम और बेतुकी सोच को काबू करने में मदद करती हैं। साथ में, काउंसलिंग, परिवार को समझाना-समझाना, और मरीज की सामाजिक समझ विकसित करने की कोशिश की जाती है।

कोई भी दवा या थेरेपी तब तक असरदार नहीं जब तक मरीज समय पर इलाज न लें। इसीलिए शुरुआती अवस्था में ही पहचान और उपचार शुरू करना जरूरी है। परिवार का जुड़ाव, दोस्ती का क्लोज सर्कल, और सपोर्ट ग्रुप इन लोगों के लिए लाइफलाइन साबित होते हैं।

हालांकि Schizophrenia पूरी तरह से ठीक नहीं होती, लेकिन सही इलाज, काउंसलिंग और जीवनशैली में बदलाव से मरीज अपनी जिंदगी को फिर से पटरी पर ला सकते हैं। तनाव से बचें, शराब-गांजे जैसी चीजों से दूर रहें और संतुलित आहार व एक्सरसाइज को दिनचर्या में शामिल करें।

वैज्ञानिक आजकल खासतौर से जेनेटिक कारणों और कुछ स्पेशल जैविक संकेतों (बायोमार्कर्स) की खोज में लगे हैं, ताकि इस रोग का न सिर्फ जल्दी पता चल सके, बल्कि हर मरीज के लिए पर्सनलाइज्ड इलाज भी बनाया जा सके। अभी रास्ता लंबा है, लेकिन जागरूकता इस सफर का सबसे जरूरी पड़ाव है।