ओवरवर्क क्या है और कैसे पहचानें
क्या आप काम के घंटों के बाद भी थका हुआ महसूस करते हैं? ओवरवर्क यानी लगातार अधिक काम करने से बॉडी और दिमाग दोनों प्रभावित होते हैं। इसके सामान्य संकेत हैं लगातार थकावट, नींद की समस्या, चिड़चिड़ापन, काम में मन न लगना और बार-बार बीमारी। अगर आप हफ्ते में 50-60 घंटे लगातार काम कर रहे हैं तो सावधान होने की जरूरत है।
त्वरित पहचान के आसान तरीके
पहला सवाल: क्या आपकी छुट्टियाँ अक्सर अधूरी रहती हैं? दूसरा: क्या काम का दबाव घर और रिश्तों में असर डाल रहा है? तीसरा: क्या आप काम से बचने के लिए अल्कोहल या अधिक टीवी देख रहे हैं? ये छोटे संकेत हैं जो बाद में बर्नआउट या गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं में बदल सकते हैं। रोज़ाना 10-15 मिनट खुद की जांच करें — energy, mood और नींद पर ध्यान दें।
एक और व्यावहारिक तरीका: अपनी वर्किंग ऑवर नोट करिए। अगर नियमित रूप से अधिक समय काम में ले रहे हैं, तो यह ओवरवर्क की सीधी निशानी है। काम के बीच छोटे-छोटे ब्रेक लेना न भूलें — 52 मिनट काम के बाद 17 मिनट का छोटा ब्रेक वैज्ञानिक तौर पर उपयोगी रहता है।
फौरन लागू करने योग्य 10 सरल उपाय
1) सीमा तय करें: रोज़ाना काम का एक स्पष्ट समय तय कीजिए और उससे बाहर काम बंद करिए। फोन और ईमेल नोटिफिकेशन शट कर दें।
2) छोटी ब्रेक नीति अपनाएँ: हर 45–60 मिनट के बाद 5–10 मिनट चलें या स्ट्रेच करें। इससे दिमाग तरोताजा रहता है।
3) प्राथमिकताएँ तय करें: हर दिन तीन सबसे जरूरी काम लिखिए और पहले उन्हें पूरा कीजिए। बाकी रद्द या डेलीगेट कर दें।
4) 'ना' कहना सीखें: हर अनुरोध पर हां मत बोलिए। सीमित समय और संसाधन हैं — स्पष्ट सीमाएँ बताने से सम्मान बढ़ता है।
5) नींद और पोषण पर ध्यान: 7–8 घंटे की नींद और संतुलित भोजन से आपकी उत्पादकता बेहतर होती है।
6) बॉडी मूवमेंट: हफ्ते में कम से कम 3 बार 30 मिनट की हल्की एक्सरसाइज तनाव घटाती है।
7) काम का रोल बाँटें: टीम के साथ काम बाटें — हर चीज अकेले करने की कोशिश छोड़िए।
8) डिजिटल बॉर्डर बनाइए: रात में वर्क एप्स को साइलेंट या डिलीट कर दें।
9) बॉस/HR से बात करें: अगर काम की मात्रा लगातार बढ़ रही है, तो उसको जताइए और समाधान मांगिए—रिसोर्स, टाइमलाइन या प्राथमिकता बदलने का अनुरोध करें।
10) पेशेवर मदद लें: अगर चिंता, लगातार नींद न आना या सोच बंद लगना जारी रहे तो डॉक्टर या काउंसलर से मिलें।
ओवरवर्क से निपटना आसान नहीं, पर छोटे-छोटे कदम बड़ी मदद कर सकते हैं। काम-जीवन संतुलन बनाने का मतलब कम काम नहीं बल्कि समझदारी से काम करना है। अगर आपको लगे कि स्थिति हाथ से निकल रही है, तो तुरंत कार्रवाई करें—छोटी आदतें जीवन बदल देती हैं।
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