30 मार्च को जब चैत्र नवरात्रि 2025 शुरू होती है, तो पूरे भारत में घर-घर में उमंग की धूम मच जाती है। यह नवरात्रि केवल एक धार्मिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि नया हिन्दू साल, वसंत का आगमन और आत्मीय शुद्धि का संदेश भी देती है। पहली रात को माँ शैलपुत्री को अर्पित किया जाता है, जो दुर्गा का पहला अवतार माना जाता है। इस दिन के रिवाजों को समझना और सही ढंग से पूजा करना, भक्तों के लिए सुख‑समृद्धि की कुंजी बनता है।
माँ शैलपुत्री का महत्व और प्रतीक
शैलपुत्री शब्द का अर्थ है "पर्वत की बेटी"। वह पहले चरण में प्रदर्शित होती हैं, जब ब्रह्मा ने शेत पर से उत्पन्न शुद्ध शक्ति को प्रकृति के रूप में उभारा। शैलपुत्री को भवारि, पार्वती और हे़मावती जैसे नामों से भी पुकारा जाता है। उनका प्रमुख कार्य भक्तों को शारीरिक और मानसिक स्थिरता प्रदान करना है।
वेद शास्त्रों के अनुसार शैलपुत्री चैत्र नवरात्रि 2025 में मूलाधार चक्र (Muladhara Chakra) की देवी हैं। यह चक्र हमें धरती से जोड़ता है, बुनियादी सुरक्षा और जीवन शक्ति देता है। साथ ही, वे शनि के साथ मिलकर चंद्रमा (चन्द्र) को नियंत्रित करती हैं, जो भावनाओं, स्थिरता और मन की शांति का कारक है।
एक आदर्श चित्र में शैलपुत्री नंदी (बैल) की सवारी करती दिखती हैं। नंदी शक्ति, धैर्य और नैतिकता का प्रतीक है। हाथ में वह त्रिशूल धारण करती हैं, जो बुराई को हटाने और रक्षा करने की शक्ति दर्शाता है। दूसरे हाथ में कमल का फूल, शुद्धता और समर्पण को उजागर करता है। उनके माथे पर स्थित अर्धचंद्र, शांति और आध्यात्मिक संतुलन का संकेत देता है।

पहले दिन की पूजा विधि और साधारण रिवाज
पहले दिन का रंग ‘संतरे’ (ऑरेंज) है, जो ऊर्जा और उत्साह को दर्शाता है। इस रंग को घर की सजावट, कपड़े और दिवाली में भी उपयोग किया जाता है। फूल के रूप में ‘जलेबी’ (गुड़िया) के समान ‘गुड़िया’ (हिबिस्कस) का चयन किया जाता है, क्योंकि यह शैलपुत्री को सबसे प्रिय है। प्रसाद में देसी घी से बनी मिठाई और भरपूर घी का उपयोग किया जाता है, जिससे आध्यात्मिक ऊर्जा में वृद्धि होती है।
- रंग: ऑरेंज
- फूल: जलेबी (हिबिस्कस)
- प्रसाद: देसी घी और घी‑मिठाइयाँ
- चक्र: मूलाधार (रूट) चक्र
- शासन करने वाला ग्रह: चंद्र (Moon)
पूजा के लिए सुबह जल्दी उठकर साफ‑सुथरा कपड़ा पहनना चाहिए। स्नान‑स्नान के बाद शैलपुत्री की मूर्ति या चित्र के सामने एक छोटा पवित्र स्थान तैयार करें। इस स्थान पर साफ़ कपड़ा बिछाकर, एक छोटा कंडिल (दीप) देसी घी से भरें और जलाएँ। फिर हिबिस्कस के फूल चढ़ाएँ, और घी‑मधुर प्रसाद अर्पित करें।
मुख्य मंत्रों में ॐ शैलपुत्री उर्व्य पादे स्वाहा तथा ॐ नमः शैलपुत्र्यै शामिल हैं। इन्हें ध्यान के साथ दोहराते हुए, मन को शांति और एकाग्रता से भरें। मनोकामना का समय भी यही है; शैलपुत्री को अपनी अंदरूनी इच्छा बताएं, क्योंकि इस नवरात्रि में उनका आशीर्वाद विशेष रूप से प्रभावी माना जाता है।
भोजन में शाकाहारी विकल्प अपनाए जाने चाहिए। कुछ भक्त उपवास रखते हैं—सिर्फ फल, नट्स और हल्का दही खाया जाता है। उपवास के दौरान पानी के साथ घी‑डुबकी (घी में भुना हुआ शहद) पीने से मन और शरीर दोनों को शक्ति मिलती है।
पूजा समाप्त होने पर, घी के दीप को 7-9 मिनट तक जलाने के बाद सावधानी से बुझा दें। फिर सभी परिवार के सदस्य मिलकर प्रसाद बांटें। इस प्रक्रिया से घर में शांति, सौहार्द और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
शैलपुत्री की पूजा केवल शारीरिक अनुशासन नहीं, बल्कि मन की शुद्धि का भी माध्यम है। इस दिन के दौरान ध्यान, श्वास‑प्रश्वास और नियमित जप से आत्म‑आत्मविश्वास बढ़ता है। यह न केवल व्यक्तिगत उन्नति देता है, बल्कि परिवारिक जीवन में भी सामंजस्य लाता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो, रंग ऑरेंज को देख कर शरीर में स्रावित होने वाले ‘सेरोटोनिन’ की मात्रा बढ़ती है, जिससे मन में उत्साह और खुशी की भावना उत्पन्न होती है। हिबिस्कस के फूल की सुगंध तनाव घटाती है और नींद में सुधार करती है। घी के दीप की लौ से उत्पन्न होने वाला हल्का गर्मी, शरीर के भीतर उलझी हुई नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है, जिससे मन में शान्ति स्थापित होती है।
इस प्रकार, चैत्र नवरात्रि का पहला दिन माँ शैलपुत्री को समर्पित न केवल धर्मिक कर्तव्य है, बल्कि एक सम्पूर्ण जीवन‑शैली सुधार का साधन भी बनता है। यदि आप इस नवरात्रि में अपने भीतर के शुद्धतम स्वर को सुनना चाहते हैं, तो इस दिन की पूजा को दिल‑से, सच‑मुच अपनाएँ।