क्या, कब और कहां दिखाई देगा

आसमान में शो टाइम तय है—7-8 सितंबर 2025 की रात, भारत के ऊपर एक बेहतरीन पूर्ण चंद्र ग्रहण लगेगा। यह साल 2025 का दूसरा और अंतिम टोटल लूनर इक्लिप्स है। सबसे खास बात: कुल चरण 82 मिनट चलेगा, यानी डेढ़ घंटे के करीब चांद लाल-तांबे की आभा में डूबा रहेगा।

पूरे इवेंट की टाइमलाइन भारतीय समय के मुताबिक इस तरह है: रात 8:58 पर पेनुम्ब्रल चरण शुरू होगा, 9:57 पर आंशिक ग्रहण दिखना शुरू होगा, 11:42 पर चंद्रमा पूरी तरह पृथ्वी की उम्ब्रा में आ जाएगा (यहीं से लालिमा सबसे गहरी दिखेगी), और 1:26 बजे रात तक पूरा ग्रहण खत्म हो जाएगा।

भारत के लिए यह एकदम प्राइम-व्यूइंग इवेंट है। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई, अहमदाबाद—लगभग हर बड़े शहर से चंद्रमा कुल चरण के दौरान आसमान में ऊंचाई पर रहेगा। साधारण शब्दों में, आपको न तो क्षितिज के पास की धुंध से जूझना होगा, न ही महज कुछ मिनटों की झलक मिलेगी; लगभग पूरी रात अच्छी दृश्यता रहेगी। यह भाद्रपद पूर्णिमा की रात भी है, तो चांद का आकार और चमक ग्रहण से पहले आपको साफ दिखाई देंगे।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी कवरेज बड़ी है। एशिया, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के कई हिस्सों से यह आराम से दिखेगा। कुछ प्रमुख शहरों के हिसाब से कुल चरण का समय इस तरह रहेगा—लंदन: शाम 7:30 से 7:52 (चंद्रोदय के साथ), बीजिंग: रात 1:30 से 2:52, पेरिस और केप टाउन: 7:30 से 8:52, इस्तांबुल/काहिरा/नैरोबी: 8:30 से 9:52, तेहरान: 9:00 से 10:22। अमेरिका के बड़े हिस्सों में यह चरण या तो नहीं दिखेगा या बहुत सीमित दिखेगा, इसलिए एशिया-यूरोप के दर्शकों के लिए मौका खास है।

क्या इसे देखने के लिए किसी चश्मे या फिल्टर की जरूरत है? बिल्कुल नहीं। सूर्य ग्रहण के उलट, चंद्र ग्रहण को नंगी आंखों से देखना पूरी तरह सुरक्षित है। आप दूरबीन, टेलीस्कोप या साधारण कैमरे से भी इसे आराम से देख और कैप्चर कर सकते हैं।

जिन्हें पंचांग और ज्योतिष में रुचि है, उनके लिए संदर्भ भी दिलचस्प है। यह चंद्र ग्रहण कुम्भ राशि और शतभिषा नक्षत्र में माना जा रहा है। परंपरागत मान्यताओं में इसे ऊर्जाओं के बदलाव से जोड़ा जाता है; कई लोग भावनात्मक उतार-चढ़ाव, परिवारिक समीकरण या स्वास्थ्य पर असर जैसी बातें उल्लेख करते हैं। राशि-वार व्याख्याएं भी चलेंगी—मेष के लिए अवसर, वृष को कामकाजी पहचान, कुम्भ को संवाद में सावधानी, मीन को आत्मसंयम—मगर यह मान्यताएं आस्था पर आधारित हैं; वैज्ञानिक दृष्टि से ग्रहण का मानव स्वास्थ्य या रोजमर्रा की घटनाओं पर कोई सीधा असर साबित नहीं है।

अगर आप पहली बार ऐसा नजारा देखने जा रहे हैं, तो कुछ आसान तैयारी मदद करेगी:

  • खुला आसमान और पूर्व/दक्षिण-पूर्व दिशा साफ दिखे, ऐसी जगह चुनें।
  • शहर की तेज रोशनी से थोड़ी दूरी रखें, तो रंग ज्यादा गहरे दिखेंगे।
  • मौसम सितंबर में कई शहरों में बादलों वाला रहता है; बैकअप लोकेशन दिमाग में रखें।
  • परिवार और बच्चों के लिए यह बढ़िया लर्निंग मोमेंट है—स्कूल, साइंस क्लब, प्लेनेटेरियम अक्सर ऐसे मौके पर सामूहिक अवलोकन कराते हैं।

टाइमिंग दोहराने लायक है, क्योंकि यहीं से आपकी प्लानिंग बनती है—रात 9:57 पर जैसे ही आंशिक ग्रहण शुरू होगा, चंद्रमा पर पृथ्वी की गोल छाया का किनारा धीरे-धीरे सरकता दिखेगा; 11:42 से 1:04 के बीच कुल चरण सबसे नाटकीय होगा; और 1:26 पर पूरा इवेंट समाप्त।

और हां, Blood Moon 2025 कोई खगोलीय “खतरा” नहीं, बस रोशनी और छाया का शानदार खेल है, जिसे धरती का वातावरण और खूबसूरत बना देता है।

पर्दे के पीछे का विज्ञान और देखने की तैयारी

पूर्ण चंद्र ग्रहण तब होता है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में आ जाते हैं और पृथ्वी अपनी गहरी छाया (उम्ब्रा) चंद्रमा पर डाल देती है। सवाल यह कि चंद्रमा गायब क्यों नहीं हो जाता? वजह है पृथ्वी का वातावरण। सूर्य की किरणें जब पृथ्वी के किनारों से गुजरती हैं, तो वातावरण नीली, बैंगनी तरंगें ज्यादा बिखेर देता है और लाल-नारंगी रोशनी को मोड़कर चंद्रमा तक पहुंचा देता है। यही कारण है कि कुल चरण में चंद्रमा तांबे जैसा लाल दिखता है। इसे आप एक तरह से “धरती का सूर्यास्त” चंद्रमा की सतह पर पड़ते हुए देख रहे होते हैं।

रंग हर बार एक जैसा नहीं होता। कभी हल्का ईंट-लाल, कभी गहरा तांबा या भूरेपन की आभा। यह बदलाव पृथ्वी के वातावरण में धूल, एरोसॉल, बादल और उस समय की हवा की साफ-सफाई पर निर्भर करता है। ज्वालामुखी विस्फोट या बड़े धूल-तूफानों के बाद ग्रहण में लालिमा ज्यादा गाढ़ी दिख सकती है।

ग्रहण की जियोग्राफी भी समझ लें। चंद्रमा पृथ्वी की छाया के दो हिस्सों से गुजरता है—पेनुम्ब्रा (हल्की छाया) और उम्ब्रा (गहरी छाया)। पेनुम्ब्रल चरण में चमक थोड़ी मंद होती है, कई लोगों को फर्क कम दिखता है। आंशिक चरण में जैसे ही उम्ब्रा का किनारा चंद्रमा को काटता है, एक साफ गोल घेरा सरकता नजर आता है। कुल चरण में पूरा चंद्रमा उम्ब्रा के भीतर होता है—यहीं लालिमा सबसे ज्यादा गहरी लगती है।

खगोल विज्ञान में ग्रहणों का लंबा कैलेंडर ‘सारोस चक्र’ से समझा जाता है—करीब 18 साल 11 दिन बाद बहुत मिलते-जुलते ग्रहण फिर से होते हैं। यानी जो पैटर्न आप इस बार देखेंगे, उसका एक “रिश्तेदार” लगभग दो दशक बाद फिर आएगा, पर इतनी आसान दृश्यता भारत को फिर कब मिले—यह आपके शहर के मौसम और आसमान पर भी टिका है।

देखने की छोटी-सी चेकलिस्ट:

  • लोकेशन: इमारतों और पेड़ों से घिरे न हों। छत, पार्क, खुले मैदान बेहतर हैं।
  • कंफर्ट: एक हल्का जैकेट, पानी की बोतल, और बैठने की चटाई रखें। रात लंबी है।
  • सुरक्षा: लेज़र प्वॉइंटर या तेज रोशनी से बचें; दूसरों का व्यू खराब होता है।
  • बच्चे: उन्हें चरणों के बारे में पहले बता दें—क्यों लाल दिखता है, कब-कब रंग बदलेगा—तो उन्हें समझने में मजा आएगा।

फोटोग्राफी की बात करें तो स्मार्टफोन भी काफी काम के हैं। नाइट मोड, 2x-3x ऑप्टिकल जूम और ट्राइपॉड मदद करते हैं। ISO को बहुत ऊंचा न रखें ताकि शोर न बढ़े। टेलीफोटो लेंस या मिररलेस/DSLR है तो शटर 1/60-1/250 सेकंड के बीच, मैनुअल फोकस पर “इन्फिनिटी” के करीब और RAW फॉर्मेट का इस्तेमाल करें—रंगों की बारीकियां बाद में एडिट में उभर कर आती हैं। कुल चरण में चंद्रमा अपेक्षाकृत डिम हो जाता है, इसलिए एक्सपोजर थोड़ा बढ़ाना पड़ सकता है; आंशिक चरण में एक्सपोजर घटाना होगा ताकि हाइलाइट्स न उड़ें।

मौसम की अड़चन आम है, खासकर सितंबर में। अगर बादल छाए रहें, तो शहर बदलना सभी के लिए संभव नहीं होता। ऐसे में छिटकी बादलों के बीच कुल चरण पकड़ने की कोशिश करें; लालिमा अक्सर बादलों के पतले पर्दे के पार भी झलक जाती है। कई खगोल क्लब सामूहिक अवलोकन रखते हैं—टेलीस्कोप से झांका तो चंद्र सतह के गड्ढों पर छाया की “धार” साफ दिखती है, जो अनुभव को और रोमांचक बनाती है।

लोक-परंपराओं में चंद्र ग्रहण को लेकर सूतक वर्जनाएं भी मिलती हैं। कई परिवार ग्रहण के कुछ घंटे पहले तक भोजन-पूजा में बदलाव करते हैं। यह सांस्कृतिक परंपराएं हैं; विज्ञान की नजर से चंद्र ग्रहण का भोजन, गर्भावस्था या स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल असर साबित नहीं है। जो मानें, वे अपनी आस्था निभाएं—जो न मानें, वे नजारा बिना किसी डर के देखें।

और आखिर में, फर्क समझ लें—सूर्य ग्रहण दुर्लभ है, मिनटों में खत्म हो जाता है और देखने में सावधानी चाहिए। चंद्र ग्रहण लंबे समय तक चलता है, पूरी तरह सुरक्षित है और दूर-दूर तक करोड़ों लोग एक साथ इसे देख सकते हैं। यही वजह है कि यह खगोलीय घटना एक सामूहिक अनुभव बन जाती है—छतों पर परिवार, पार्कों में छात्र, क्लबों के साथ शौकिया खगोलविद—सब एक ही आसमान की ओर, एक ही समय पर, एक ही नजारा देखते हैं। 7-8 सितंबर की रात वही मौका है।