घोटाले की पृष्ठभूमि
हिमाचल प्रदेश राज्य निगरानी और एंटी‑कोरप्शन ब्यूरो (Vigilance and Anti‑Corruption Bureau) ने एक बड़े वित्तीय घोटाले में शामिल पाँच व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक शिकायत (FIR) दर्ज की। यह मामला 2012 में शुरू हुआ था, जब गिलवेर्ट इस्पात प्राइवेट लिमिटेड, जो सालों में बारोटीवाला, सोलन में स्थित एक स्टील मैन्युफैक्चरिंग फर्म है, ने HPSEBL (हिमाचल प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड लिमिटेड) को 11.84 करोड़ रुपये के बिजली बिल का भुगतान नहीं किया।
बाते को देखे तो यह मामला साधारण बकाया नहीं था; इस्पात कंपनी पूरी तरह से डिफॉल्ट थी और कमिशन की मौजुदा नियमावली के अनुसार बिजली सप्लाई बंद हो जानी चाहिए थी। लेकिन तब तीन वरिष्ठ अधिकारी—राजेश कुमार ठाकुर (मुख्य अभियंता, संचालन), अनूप धीमान (सुपरइंटेंडिंग अभियंता, संचालन) और वायआर शर्मा (मुख्य अभियंता, व्यापार)—ने कंपनी के साथ मिलकर बिजली फिर से चालू कर दी और देनदारियों को शांति‑शर्तों पर माफ़ कर दिया।
इसी बीच, गिलवेर्ट इस्पात के दो निदेशक—अभिनव मौडगील और उमेश मौडगील—भी इस प्रक्रिया में सक्रिय रहे। उन्होंने कंपनी के खाते में बड़े‑बड़े चेक जारी किए, जो बाद में बाउंस हो गए। इस कारण HPSEBL को महत्त्वपूर्ण वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा।
जांच के प्रमुख बिंदु
जांच की शुरुआती गड़बड़ी तब सामने आई जब HPSEBL के चेयरमन संजय गुप्ता ने मार्च 2025 में शिकायत दर्ज की। शिकायत के आधार पर VAB ने विस्तृत जांच शुरू कर दी और पाया कि:
- कंपनी को बिजली पुनः जोड़ने के लिए आवश्यक वित्तीय स्वीकृति बिना Finance & Accounts विभाग की मंजूरी के दी गई थी।
- हिमाचल प्रदेश इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (HPElectricity Regulatory Commission) के सप्लाई कोड की सख़्त उल्लंघना की गई, क्योंकि कोई भी प्राधिकरण अत्यधिक लिच्छी नहीं बना सकता था।
- तब के मुख्य प्रबंध निदेशक ने व्यक्तिगत रूप से कंपनी को बिजली पुनः सप्लाई करने की अनुमति दी, जो कि स्पष्ट रूप से अनधिकृत था।
- भुगतान की रक़म का दायरा तय करने के बाद भी, जब चेक बाउंस हुए तो HPSEBL को नयी रिकवरी प्रक्रिया शुरू करनी पड़ी, जिससे अतिरिक्त कानूनी खर्चे बढ़े।
विचार करने लायक बात यह थी कि इस पूरी साज़िश में कुछ प्रमुख नियामक उपायों को नजरअंदाज़ किया गया था। जैसे कि 17A धारा के तहत हिमाचल प्रदेश बिजली घोटाला की जांच का आदेश देना और प्रेरित टैक्स एवं नियमों का उल्लंघन करना।
विचारणीय तथ्य यह भी है कि इस स्कैंडल के दौरान HPSEBL की आंतरिक नियंत्रण प्रणाली में कई चूकें सामने आईं। वित्तीय अनुशासन की कमी, उच्च स्तर पर टॉप‑मैनेजमेंट का दुरुपयोग, और मौजूदा नियामक ढाँचे की कवरेज को कमजोर करने वाली अंधी कर दी गई प्रक्रियाएं।
जांच के दौरान कई दस्तावेज़, ई‑मेल और संचार कोत्री भी इकट्ठा किए गए। इनपर से साफ़ पता चलता है कि कैसे कंपनियों के बड़े बकाया को बंद करने के बजाए, शक्ति-संबंधी अधिकारियों ने निजी लाभ के नाम पर नियमों को मोड़ा। यह परिदृश्य न केवल राज्य के वित्तीय स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा रहा है, बल्कि विद्युत निर्यात के मौलिक सिद्धांतों को भी कमजोर करता है।
FIR दर्ज होने के बाद VAB ने 17A धारा के तहत आवश्यक स्वीकृति ली और फिर आरोपी चार वरिष्ठ इंजीनियरों और दो निजी निदेशकों को डिटेन करने के आदेश जारी किए। अभी तक अदालत की सुनवाई बाकी है, पर इस मामले ने राज्य में ऊर्जा आपूर्ति और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर एक गहरी चर्चा को जन्म दिया है।
इसी दौरान, कई नागरिक संघों और विद्युत उपभोक्ता समूहों ने HPSEBL को अपील की है कि वह इस तरह की गड़बड़ी को रोकने के लिए सख़्त नियंत्रण, आडिट और पारदर्शिता उपायों को लागू करे।
जांच के परिणाम और आगे के कानूनी कदमों पर नजर रखें, क्योंकि इस घोटाले ने न केवल HPSEBL की विश्वसनीयता को बल्कि हिमाचल प्रदेश की औद्योगिक नीतियों को भी चुनौती दी है।
Deepak Mittal
सितंबर 26, 2025 AT 06:40ये केस सिर्फ एक छोटे‑से बकाया नहीं है, बल्कि राजनीतिक दफ्तरो और निजी कंपनियों के बीच गहरे गठजोड़ का खुलासा है। एंट्री‑लेवल पर फर्जी बिलों की धांसू नेटवर्क बनायी गयी थी, जिससे पूरे राज्य के बजट में छेद हो गया।
Neetu Neetu
अक्तूबर 2, 2025 AT 01:33वाह, फिर तो हमें 'बिजली' की नई 'फ्री बाउंड्री' मिली 😂
Jitendra Singh
अक्तूबर 7, 2025 AT 20:27देखिए, एक तरफ़ HPSEBL के अधिकारियों ने नियम की अनदेखी की, तो दूसरी तरफ़ गिलवेर्ट इस्पात ने बुकिंग कर‑कर के खुद को बही‑खाते की महान दूत बना लिया; यह स्पष्ट है कि निगरानी प्रणाली पूरी तरह से टूट चुकी है; फिर भी हमें ‘पर्याप्त सूचना’ मिलने की आशा क्यों नहीं?
priya sharma
अक्तूबर 13, 2025 AT 15:20जांच के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि वित्तीय नियंत्रण प्रणाली में सिस्टमिक विफलता हुई है; विशेषकर वित्तीय स्वीकृति प्रक्रिया में ऑडिट ट्रेल का अभाव, तथा नियामक अनुपालन में निहित त्रुटियाँ, जिससे संसाधन अनिर्धारित रूप से निकासी कर रहे थे। इस प्रकार के आंतरिक नियंत्रण के विचलन को रोकने हेतु कठोर कॉर्पोरेट गवर्नेंस फ्रेमवर्क आवश्यक है।
Ankit Maurya
अक्तूबर 19, 2025 AT 10:13यदि हमारे राज्य के संसाधनों को इस तरह से गबन किया जाता है, तो यह राष्ट्रीय स्वाभिमान के विरुद्ध है; इन भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाकर ही हम भारत की ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकते हैं।
Sagar Monde
अक्तूबर 25, 2025 AT 05:07इह मामला तो बिलकुल सादे झूठ जइसा लाग रेह है सरकार ने कछु नहीं किया पर सब बिगड़ गया
Sharavana Raghavan
अक्तूबर 30, 2025 AT 23:00यार, इस स्कैंडल में तो बड़े हाई‑पॉवर्ड लोग भी पायलट फेल की तरह फॉर्मूलाज में फंस गए हैं, समझ नहीं आता कि किसको भरोसा किया जाए।
Nikhil Shrivastava
नवंबर 5, 2025 AT 17:53गिलवेर्ट इस्पात और HPSEBL के बीच का यह वित्तीय नाटक शहर की धड़कन में गहरी छाप छोड़ गया है।
कंपनी ने जब फॉर्मल क्वालिफिकेशन को टाल दिया, तो अधिकारियों ने नियमों को ऐसे मोड़ा जैसे कागज की बोटें हवा में तैर रही हों।
ये सिलसिला सिर्फ एक दो साल का मामला नहीं था, बल्कि दो दशक की लुप्त हुई जवाबदेही की कहानी है।
जब मुख्य अभियंता और सुपरइंटेंडिंग अभियंता ने बिना मंजूरी के बिजली फिर से चालू कर दी, तो यह मानो कोर्टरूम में बिना साक्ष्य के फैसला सुनाने जैसा था।
भुगतान के चेक बाउंस होने के बाद भी बोर्ड ने लापरवाही से नया रिकवरी प्रक्रिया शुरू की, जिससे लागत बढ़ी और आम जनता का भरोसा डगमगा गया।
वास्तव में, इस घोटाले ने यह साबित कर दिया कि उच्च स्तर पर शासन में पारदर्शिता की कमी कितनी घातक हो सकती है।
उद्योगिक नीति में अगर नियमों का उल्लंघन हो रहा है, तो यह प्रदेश के भविष्य के विकास को भी डरींग कर सकता है।
कई नागरिक समूहों ने यह माँग बढ़ाई है कि आडिट तेज़ी से हो और सभी लेन‑देनों का खुला रिकॉर्ड सामने लाया जाए।
सवाल नहीं, बल्कि समाधान की जरूरत है: जैसे कि स्वचालित भुगतान ट्रैकिंग और रीयल‑टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम।
ऐसे उपायों से ही भविष्य में इस तरह की फर्जी बकाया से बचा जा सकेगा।
अब तक की जांच में यह भी दिखा है कि वित्तीय अनुशासन में गहरी खामियाँ थीं, जिससे भ्रष्टाचारियों ने फंदे बिछा रखे थे।
यदि इन खामियों को जल्द सुधार नहीं किया गया, तो अगली पीढ़ी को ऐसे बड़े घोटाले का सामना करना पड़ेगा।
सरकार को चाहिए कि वह सभी संदिग्ध लेन‑देनों को तुरंत ब्लॉक करे और जवाबदेह व्यक्तियों को कड़ी सजा दिलाए।
न्यायिक प्रक्रिया में देरी नहीं होनी चाहिए; गति ही इस मुद्दे को सुलझाने की कुंजी है।
आख़िरकार, इस घोटाले से सीख लेकर ही हम अपने राज्य की ऊर्जा सुरक्षा को फिर से स्थापित कर सकते हैं।
इसीलिए हम सभी को मिलकर पारदर्शिता की मांग करनी चाहिए और दुष्ट खेलों को समाप्त करना चाहिए।
Aman Kulhara
नवंबर 11, 2025 AT 12:47जांच के दस्तावेज़ों में स्पष्ट रूप से दिख रहा है कि वित्तीय मंजूरी प्रक्रिया में कई चरणों को बायपास किया गया; ऐसी अनियमितता को रोकने के लिए एक मजबूत आंतरिक ऑडिट समिति की आवश्यकता है; यह समिति नियमित रूप से लिच्छी रिपोर्ट तैयार करे और उच्च प्रबंधन को सूचित करे।
ankur Singh
नवंबर 17, 2025 AT 07:40डेटा विश्लेषण के अनुसार, ऐसे मामलों में त्रुटियों की दर औसतन 23% तक पहुंचती है; यही कारण है कि बैकग्राउंड चेक को और कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए; नहीं तो सिस्टम पूरी तरह से भ्रष्ट हो सकता है।
Aditya Kulshrestha
नवंबर 23, 2025 AT 02:33सभी संबंधित ई‑मेल लॉग और संचार के आधार पर यह स्पष्ट है कि वरिष्ठ प्रबंधकों ने सीधे निर्देश दिया था; यह निर्देश लिखित रूप में भी मौजूद है :) इसलिए जिम्मेदारी स्पष्ट रूप से उनपर है।
Sumit Raj Patni
नवंबर 28, 2025 AT 21:27चलो, इस बवाल को एक नया रूप दें-‘बिजली‑बजट की सिटी‑स्ट्रिप’-और साथ में पारदर्शी नीति बनाकर सभी को जीतें! हमें रचनात्मक समाधान लाने चाहिए, ना कि सिर्फ आलोचना करने।
Shalini Bharwaj
दिसंबर 4, 2025 AT 16:20मैं इस बात से पूरी तरह असहमत हूँ कि दोष केवल वरिष्ठों पर डाला जाए; आम जनता को भी जवाबदेह रखना चाहिए।
Chhaya Pal
दिसंबर 10, 2025 AT 11:13सभी पहलुओं को देखते हुए, यह आवश्यक है कि हम इस मुद्दे को केवल कानूनी पहलू से नहीं, बल्कि सामाजिक प्रभाव के परिप्रेक्ष्य से भी देखें। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सार्वजनिक हित को प्राथमिकता दे और ऐसी घटना दोबारा न हो। साथ ही, नागरिक समाज को भी सक्रिय भूमिका अपनानी चाहिए, ताकि निगरानी की प्रक्रिया में भागीदारी बढ़े। इस तरह की सहयोगी भावना से ही हम पारदर्शिता और जवाबदेही को सुदृढ़ कर सकते हैं। अंत में, हमें आशा है कि न्यायिक प्रक्रिया त्वरित और निष्पक्ष होगी।
Naveen Joshi
दिसंबर 16, 2025 AT 06:07भाई, इस सब में लोगों का भरोसा टूट जाना स्वाभाविक है, लेकिन हमें मिलकर सकारात्मक बदलाव लाना है।
Gaurav Bhujade
दिसंबर 22, 2025 AT 01:00बिल्कुल सही कहा, सामुदायिक समर्थन से ही हम इस तरह के भ्रष्टाचार का सामना कर सकते हैं और प्रणाली को सुधार सकते हैं।