ऑस्ट्रेलियाई संसद में हंगामा: 'मेरे राजा नहीं हैं' कहते हुए सांसद ने जताया विरोध
ऑस्ट्रेलिया की संसद में स्वतंत्र सांसद लिडिया थॉर्प के एक साहसिक और अपरिचित विरोध ने राजनीतिक और सामाजिक हलके में हलचल मचा दी है। सोमवार को जब किंग चार्ल्स III और क्वीन कैमिला कैनबरा के दौरे पर पहुंचे, तो उस समय संसद भवन में खड़ा एक अद्वितीय दृश्य सामने आया। ऑस्ट्रेलिया के नेताओं से मिलने आए राजा के स्वागत समारोह में लिडिया थॉर्प ने 'आप मेरे राजा नहीं हैं' का नारा बुलंद किया। उन्होंने मांग की, 'हमारी जमीन वापस करो, जो आपने लिया है उसे लौटाओ।' उनके इस कथन के बाद सुरक्षाकर्मियों को हस्तक्षेप करना पड़ा, और उन्हें वहां से हटाया गया।
औपनिवेशिक इतिहास और विवाद
यह घटनाक्रम तब हुआ जब किंग चार्ल्स ने अपने भाषण में ऑस्ट्रेलिया के पहले राष्ट्र के लोगों का उल्लेख किया और उनकी संस्कृति और अनुभवों को अपनी संवेदना के स्रोत के रूप में बताया। हालांकि, देश के कई स्वदेशी लोग इस यात्रा को ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दर्द और कठिनाइयों के रूप में देखते हैं, जो कि उनके जीवित इतिहास का एक हिस्सा है।
सेनेटर लिडिया थॉर्प, जो खुद को एक जाबारंगाई गंडजमारा महिला बताती हैं, इस आंदोलन की पुरजोर वकालत करती हैं और ब्रिटिश राजतंत्र की मुखर आलोचक हैं। इससे पहले, 2022 में अपने शपथ ग्रहण समारोह में उन्होंने ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ II को 'औपनिवेशिक महारानी' कहकर दिलचस्पी का केंद्र बनाया था। सोमवार को भी, 'गॉड सेव द किंग' गीत के दौरान वह मुड़ गईं और एक पोस्सम-फर कोट पहनकर अन्य मेहमानों से अलग खड़ी रहीं।
ग्रीन पार्टी का नजरिया
ग्रीन पार्टी ने एक बयान जारी किया, जिसमें कहा गया कि राजा का दौरा औपनिवेशिक काल के दर्दनाक यादों को ताजा करता है और सुझाव दिया कि किंग चार्ल्स स्पष्ट रूप से स्वदेशी न्याय, सत्य-प्रकटन और उपचार के लिए समर्थन व्यक्त करें। पार्टी की सेनेटर डोर कॉक्स, एक यामात नुंगर महिला, ने राजा से इतिहास के सही पहलू के साथ खड़े होने की अपील की।
मोनार्किस्ट लीग की प्रतिक्रिया
ऑस्ट्रेलियन मोनार्किस्ट लीग ने इस घटना पर टिप्पणी करते हुए थॉर्प के इस्तीफे की मांग की और उनके कार्यों को 'अपरिपक्व' करार दिया। किंग चार्ल्स का यह दौरा उनके विश्राम योजना के साथ मेल खाता है।
इस बीच, राजा और रानी की यात्रा जारी है और वे सामोन में द्विवार्षिक निदेशकों की बैठक में भाग लेने के लिए रवाना होने से पहले एक सार्वजनिक कार्यक्रम में शामिल होने की योजना बना रहे हैं। यह उनकी पहली अंतरराष्ट्रीय यात्रा है, जो उनके शासनकाल की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में देखें जा रहे हैं।
Anusree Nair
अक्तूबर 22, 2024 AT 13:00सभी को नमस्ते, संसद में लिडिया थॉर्प का बयान हमारे देश के स्वदेशी अधिकारों की एक ज़ोरदार याद दिलाता है। वह सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि एक सच्ची भावना का अभिव्यक्ति है। हमें इस विरोध को समझने और संवाद के रास्ते खोलने की जरूरत है। इतिहास के दर्द को पहचान कर ही हम आगे बढ़ सकते हैं। आशा है कि भविष्य में सभी शासक इस बात को गंभीरता से लेंगे।
Bhavna Joshi
नवंबर 1, 2024 AT 15:14लिडिया थॉर्प का यह कार्य केवल प्रोटेस्ट नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण सैद्धांतिक विमर्श का हिस्सा है, जो औपनिवेशिक विरासत के पुनर्मूल्यांकन को प्रेरित करता है। इस प्रकार का प्रतिरोध स्वदेशी अधिकारों के न्यायात्मक पुनर्स्थापन के लिए आवश्यक दायित्व को सुदृढ़ करता है। उनके शब्दावली में प्रयुक्त ऐतिहासिक जर्गन यह दर्शाता है कि वे इस मुद्दे को गहराई से विश्लेषित कर रही हैं। साथ ही, यह पहल वर्तमान राजनयिक नीतियों को भी चुनौती देती है, जिससे शासक वर्ग को एक ठोस नीति पुनःपरिचय करवाना पड़ता है। इस संदर्भ में, संसद के भीतर हुई इस घटना को सामाजिक विज्ञान के शोध दृष्टिकोण से भी देखा जा सकता है।
Ashwini Belliganoor
नवंबर 11, 2024 AT 21:14विरोध अस्वीकार्य है
Hari Kiran
नवंबर 22, 2024 AT 03:14लिडिया थॉर्प की बात सुनकर दिल को एक सुकून मिला, क्योंकि वह अक्सर व्यक्तियों की आवाज़ को सामने लाती हैं। उनका साहस हमें अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना सिखाता है। हमें इस प्रकार के विरोध को समर्थन देना चाहिए ताकि भविष्य में और अधिक सकारात्मक बदलाव आएँ। साथ ही, यह भी जरूरी है कि राजघराने के साथ संवाद का मार्ग खुला रहे।
Hemant R. Joshi
दिसंबर 2, 2024 AT 09:14लिडिया थॉर्प द्वारा उठाया गया यह मुद्दा वास्तव में गहरी सामाजिक-राजनीतिक जड़ें रखता है। सबसे पहले यह बात स्पष्ट होनी चाहिए कि औपनिवेशिक शोषण का दर्द केवल ऐतिहासिक तथ्य नहीं, बल्कि आज के समय में भी कई समुदायों के जीवन में गूँजता है। स्वदेशी लोगों की भूमि पर अधिकारों की पुनःस्थापना के बारे में बात करने से पहले हमें सम्मान और समझ का वातावरण बनाना होगा। शासनशास्त्र के दृष्टिकोण से देखा जाए तो, ऐसे मौखिक विरोध विरोधी शक्ति के स्वर के रूप में कार्य करते हैं, जो सत्ता को जवाबदेह बनाते हैं। दूसरा, यह जरूरी है कि इस प्रकार के बयान को केवल विरोध के रूप में नहीं, बल्कि परिवर्तन के उत्प्रेरक के रूप में माना जाए। तीसरा, सभी पक्षों को इस मुद्दे पर एक व्यापक राष्ट्रीय संवाद शुरू करना चाहिए, जिसमें शैक्षिक संस्थानों, इतिहासकारों और सामुदायिक नेताओं की भागीदारी हो। चौथा, हमें यह समझना चाहिए कि राजपरिवार की यात्रा केवल शास्त्रीय शिष्टाचार नहीं, बल्कि सांस्कृतिक संवेदनशीलता की भी परीक्षा है। पाँचवाँ, स्वदेशी अधिकारों की मान्यता में अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों और स्थानीय कानूनों के सम्मिलन की आवश्यकता है। छठा, इस संदर्भ में मीडिया का भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है; उन्हें संतुलित रूप से रिपोर्ट करना चाहिए। सातवाँ, यह भी याद रखना चाहिए कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में विभिन्न आवाज़ों का सम्मिलन ही स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी है। आठवाँ, इस प्रकार की कार्रवाई के बाद सुरक्षा बलों के हस्तक्षेप को संयमित रूप से संभालना चाहिए, ताकि हिंसा के चुड़ावे से बचा जा सके। नौवाँ, सामाजिक कार्यकर्ता और नागरिक समाज को इस मुद्दे पर सतत समर्थन प्रदान करना चाहिए। दसवाँ, औपनिवेशिक विरासत की जाँच के लिए एक स्वतंत्र आयोग स्थापित किया जा सकता है, जो ऐतिहासिक तथ्यों को स्पष्ट करे। ग्यारहवाँ, इस आयोग को पारदर्शी और निष्पक्ष होना चाहिए, जिससे सभी पक्षों की विश्वासयोग्यता बनी रहे। बारहवाँ, शैक्षिक पाठ्यक्रमों में स्वदेशी इतिहास को सम्मिलित करना आवश्यक है, ताकि नई पीढ़ी को सही समझ मिले। तेरहवाँ, इस प्रक्रिया में राजतंत्र का सहयोग भी आवश्यक है, क्योंकि उनका सकारात्मक समर्थन परिवर्तन को तेज़ कर सकता है। चौदहवाँ, अंत में, यह सभी के लिए एक सीख है कि एकजुट आवाज़ें ही वास्तविक परिवर्तन लाती हैं। पंद्रहवाँ, हमें इस घटना को भविष्य में समान परिस्थितियों से निपटने के लिए एक मॉडल के रूप में देखना चाहिए। सत्रहवाँ, कुल मिलाकर, यह संघर्ष केवल एक राजनीतिक कदम नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना का पुनःउत्थान है।
guneet kaur
दिसंबर 12, 2024 AT 15:14एकदम सही कहा, लिडिया थॉर्प की रणनीति बस दिखाने के लिए नहीं बल्कि असली परिवर्तन के लिए थी। ऐसे कदमों से ही राजशाही को अपने पुराने गड्ढे देखना पड़ेगा।
PRITAM DEB
दिसंबर 22, 2024 AT 21:14सच्ची बात है, इस तरह के संघर्ष हमें एकजुट करते हैं और भविष्य के लिए सकारात्मक दिशा दिखाते हैं।
Saurabh Sharma
जनवरी 2, 2025 AT 03:14यह घटना हमें याद दिलाती है कि सामाजिक परिवर्तन के लिए कई स्तरों पर सहयोग आवश्यक है हमें सभी क्षेत्रों को जोड़ना चाहिए यह सोच में रखकर आगे बढ़ना चाहिए
Suresh Dahal
जनवरी 12, 2025 AT 09:14सत्कार्य एवं सम्मानजनक संवाद के सिद्धान्तों के अनुरूप, यह आवश्यक है कि सभी पक्ष एक सभ्य मंच पर अपने विचार प्रस्तुत करें और अंतर्राष्ट्रीय मानदण्डों के अनुरूप समाधान अपनाएँ।