ललित मोदी और शशि थरूर के बीच विवाद
भारत में क्रिकेट का प्रभाव जितना खेल पर रहा है, शायद ही किसी और गतिविधि पर उतना पड़ा होगा। भारतीय प्रीमियर लीग (आईपीएल) इसी प्रेम का एक फल है, लेकिन इसके गठन से लेकर अब तक यह विवादों में भी रहा है। सही या गलत, दुश्मनी और प्रतिद्वंद्विता की कहानियों का सिलसिला भारतीय क्रिकेट के इस संस्करण को घेरे हुए रहता है। हाल ही में, पूर्व आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी ने कांग्रेस सांसद शशि थरूर पर एक बड़ा आरोप लगाते हुए इसी प्रेम को विवाद की राह पर ले जाने का दावा किया।
ललित मोदी का आरोप है कि शशि थरूर ने कोच्चि आईपीएल टीम की नीलामी के दौरान उनपर दबाव डाला और धमकी दी कि अगर वह उनकी मंशा के खिलाफ गए तो उन्हें प्रवर्तन निदेशालय की जांच से गुजरना पड़ेगा और संभवतः जेल भी जाना पड़ सकता है। मोदी ने कहा कि थरूर ने उन्हें जबरन एक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा, जिसमें उनकी पत्नी सुनंदा पुष्कर को टीम में 25% हिस्सेदारी दी जानी थी। यहां तक कि सुनंदा का इस कन्सोर्टियम में कोई आर्थिक योगदान नहीं था।
कोच्चि आईपीएल टीम विवाद
कहा जाता है कि इस विवाद का केंद्र कोच्चि आईपीएल टीम की खरीद थी, जिसका मूल्य $348 मिलियन आंका गया था। जब ललित मोदी ने दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने से इनकार किया, तो उन्हें तब के बीसीसीआई अध्यक्ष शशांक मनोहर का दबाव झेलना पड़ा। मोदी का कहना है कि उन्हें बताया गया कि कांग्रेस की सांसद सोनिया गांधी के '10 जनपथ' से कॉल आई थी, जिससे यह अनुबंध महत्वपूर्ण था। अंततः दबाव में आकर ललित मोदी ने हस्ताक्षर किए, लेकिन अपनी बाध्यता को मीटिंग के मिनट्स में दर्ज कर दिया।
कोच्चि आईपीएल फ्रेंचाइजी का यह विवाद वित्तीय और राजनीतिक संकट में फंसा हुआ था, जिसने इसे अपनी संक्षिप्त अवधि के दौरान अस्तित्व में आने वाली कठिनाइयों में से एक बना दिया। ललित मोदी के खुलासे से आईपीएल के प्रबंधन में कथित भ्रष्टाचार और अस्थायी प्रशासन की एक और परत जुड़ गई है, जो उस समय कांग्रेस द्वारा गठित यूपीए सरकार के दौरान आईपीएल के संचालन में देखी जाती है। यह केवल एक खेल नहीं है, बल्कि इसमें अप्रत्याशित मोड़ और घुमाव भी हैं, जिन्हें वास्तव में समझना और हल करना बहुत जरूरी है।
आरोपों की परतें और विवाद
इस मामले में समय के साथ कई सवाल उठे और प्रकट हुए। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या आईपीएल जैसे महत्वपूर्ण क्रिकेट टूर्नामेंट के पीछे से इस प्रकार की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता उठ सकती थी? क्या ललित मोदी जैसे एक बड़े व्यक्ति को सत्ताधारी दल के प्रभाव में आकर बाध्य किया जा सकता था? और अंत में, सुनंदा पुष्कर का आईपीएल टीम के कन्सोर्टियम में शामिल होना क्या उनके राजनीतिक संबंधों के अधीन था?
इन सभी सवालों का जवाब शायद भविष्य में कुछ राजनीतिक और प्रशासनिक प्रक्रियाओं के जरिए मिलेगा। लेकिन इस समय, इस मामले ने एक बार फिर आईपीएल में देखे गए कथित भ्रष्टाचार और व्यावसायिक राजनीति की जटिलताओं को उजागर कर दिया है। इस क्षेत्र में पारदर्शिता लाने के लिए सदैव प्रयासरत रहने की आवश्यकता है ताकि खेल अपने वास्तविक रूप में सराहा जा सके।