भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की उम्मीदवार पासुपुलेटी मधवी लता ने हैदराबाद के आज़मपुर क्षेत्र में मतदान केंद्र संख्या 122 पर बुर्का पहने मुस्लिम महिलाओं के वोटर आईडी की जांच करके एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। उनका कहना है कि उनका इरादा मतदाताओं की प्रामाणिकता सुनिश्चित करना था, क्योंकि उन्होंने मतदाता सूची में विसंगतियों की ओर इशारा किया था।
यह घटना रंगारेड्डी के अधिकार क्षेत्र में हुई, जहां लता ने आरोप लगाया कि कई मतदाताओं को गलती से हटा दिया गया था और कई गैर-निवासियों को गलती से शामिल किया गया था। स्थिति तब और गंभीर हो गई जब पुलिस ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया। इसके जवाब में, लता गिरफ्तार किए गए लोगों के बारे में पूछताछ करने के लिए मंगलहाट पुलिस स्टेशन गईं।
मधवी लता पर केस दर्ज
लता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 171C, 186, 505(1)(c) और प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 132 के तहत मामला दर्ज किया गया है। उन पर बुर्का पहने महिलाओं के आईडी कार्ड और चेहरे की जांच करके निजता का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया है।
मधवी लता का राजनीतिक सफर
तेलुगु अभिनेत्री और राजनेता मधवी लता को तेलुगु और तमिल फिल्मों में अपने प्रदर्शन के माध्यम से पहचान मिली। कर्नाटक के हुबली में एक तेलुगु परिवार में जन्मी लता ने गुलबर्गा विश्वविद्यालय और मैसूर विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा पूरी की और फिर राजनीति में प्रवेश किया।
2018 में, उन्होंने बीजेपी में शामिल हो गईं और 2019 के आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में गुंटूर पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा, लेकिन अंततः चौथे स्थान पर रहीं। वर्तमान में, लता हैदराबाद में सांसद और AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ प्रचार कर रही हैं।
विवादित कदम से उठे सवाल
मधवी लता के इस कदम ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या उन्हें मुस्लिम महिलाओं के चेहरे देखने का अधिकार है? क्या यह उनकी निजता का उल्लंघन नहीं है? दूसरी ओर, अगर वोटर लिस्ट में गड़बड़ी है तो इसकी जांच होनी चाहिए। लेकिन क्या इसके लिए महिलाओं के चेहरे देखना जरूरी है?
इस मामले ने एक बार फिर से चुनावी राजनीति में धर्म और जाति के मुद्दे को उठाया है। बीजेपी पर अक्सर अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के प्रति पक्षपाती रवैया अपनाने के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में मधवी लता का यह कदम पार्टी की छवि को और धूमिल कर सकता है।
हालांकि, बीजेपी का कहना है कि उनका मकसद सिर्फ मतदान प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करना था। लेकिन सवाल यह है कि क्या इसके लिए महिलाओं की निजता का उल्लंघन करना जरूरी था? निश्चित रूप से इस मुद्दे पर और बहस की जरूरत है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
निष्कर्ष
मधवी लता का यह विवादित कदम एक बार फिर से भारतीय राजनीति में धर्म, जाति और लिंग के मुद्दों को उजागर करता है। हमें ऐसी घटनाओं से सबक लेते हुए एक समावेशी और सौहार्दपूर्ण समाज के निर्माण की दिशा में काम करना होगा। साथ ही, चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता के साथ-साथ मतदाताओं की गरिमा और निजता का भी ध्यान रखना होगा। तभी हम एक मजबूत और जीवंत लोकतंत्र का निर्माण कर पाएंगे।